हाथरस हादसाः भोले बाबा की धूल माथे से लगाने की होड़ में गई जान

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हाथरस। जब लोग शिक्षा,रोजगार और उपचार जैसे मूलभूत हकों से वंचित होते हैं तो बाबा वैरागियों की शरण में जाते हैं। जहां उन्हे एक उम्मीद होती है कि शायद कुछ भला हो जाए। इसी उम्मीद से बाबा की भक्ति में लग जाते हैं। उन्हे लगता है कि उनके काम बनना शुरु हो गए हैं और ये बाबा की ही कृपा मानते हैं। उनकी इतनी आस्था बढ़ जाती है कि उनके वाहन पर चढ़ी धूल समेटने के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देते हैं। यही धूल समेटने की होड़ हाथरस में लगी और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 131 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि सौ से अधिक लोग घायल हो गए। यह हादसा उस समय हुआ जब फुलरई मुगलगढ़ी में नारायण विश्वहरि उर्फ भोले बाबा सत्संग समाप्त करने के बाद बाहर निकल रहे थे। जब भोले बाबा सत्संग के समापन के बाद अपनी गाड़ी से रवाना हो रहे थे। जैसे ही उनकी गाड़ी एटा अलीगढ़ हाईवे पर चढ़ी तभी दोनों ओर से लोग उनके दर्शन और गाड़ी की धूल लेने उमड़ पड़े। तभी सड़क की एक और दलदल युक्त पटरी से फिसलते सैकड़ों अनुयाई एक दूसरे पर गिर पड़े और दब गए। हादसे के बाद बचाव कार्य में आसपास के गांव के लोगों के साथ अनुयाई भी जुट गए। राजस्थान, मध्यप्रदेश के साथ ही यूपी के विभिन्न जनपदों से आए लोग अपने साथियों और अपनों को खोजने में जुट गए। सिकंदराराऊ सीएचसी के साथ ही हाथरस, कासगंज और एटा के अस्पतालों की ओर लोग घायलों को लेकर दौड़ पड़े। एक साथ इतने लोगों के आने से अस्पताल में अफरातफरी मच गई। अस्पताल परिसरों में मृतकों के बीच अपनों की तलाश में रोते-बिलखते लोगों को देखकर हर किसी की रूह कांप उठी। आगरा-अलीगढ़ मंडल के पुलिस और प्रशासन के आला अफसर देर रात तक हाथरस और सिकंदराराऊ में घायलों के समुचित उपचार, अपनों की तलाश में भटक रहे लोगों की सहायता के साथ ही मृतकों के शव सम्मानपूर्वक उनके परिजनों के सुपुर्द करने की कवायद में जुटे रहे। राहत कार्यों के दौरान बारिश के चलते लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। हालांकि लोगों की मदद के लिए हाथरस प्रशासन ने हेल्पलाइन नंबर्स भी जारी किए। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, सवा लाख से अधिक लोग सत्संग में मौजूद थे। समापन के बाद हर कोई निकलने की जल्दी में था। गर्मी और उमस के कारण श्रद्धालु परेशान थे। इसी बीच बाबा का काफिला निकालने के लिए लोगों को रोका गया। हर कोई बाबा को नजदीक से देखना चाहता था। उनकी गाड़ी की धूल को पाना चाहता था। ऐसे में पीछे से भीड़ का दबाव बढ़ता गया। सड़क के करीब दलदली मिट्टी और गड्ढा होने के कारण आगे मौजूद लोग दबाव नहीं झेल सके औऱ एक के बाद एक गिरते चले गए। खासकर जमीन पर गिरीं महिलाओँ व बच्चों के ऊपर से लोग गुजरते चले गए। देखते ही देखते चीख-पुकार मच गई। बड़ी संख्या में लोग बेहोश हो गए। करीबी गांव मुगलगढ़ी और फुलरई के तमाम लोग दौड़ पड़े। लोगों ने भीड़ में दबे सत्संगियों को अस्पताल भिजवाया। युवक बचाव कार्य में जुट गए। तमाम सत्संगी एक दूसरे से बिछड़ गए। ग्रामीण युवकों ने माइक संभलकर लापता लोगों को उनके परिजनों से मिलने के लिए काफी देर आवाज लगाई। कुछ लोग आवाज सुनकर अपने परिजनों से मिल भी गए। मृतकों की पहचान के लिए उनके परिजन मौके पर बिखरे पड़े सामान से मिलान करने में लगे हैं।भगदड़ और एक दूसरे के नीचे दबे लोगों की घटना के बाद खाली खेत में मृत अनुयायियों का सामान बिखरा पड़ा था। इसे देखकर परिजन पहचान करने की कोशिश कर रहे थे। मौके पर किसी सत्संगी का भोजन की पोटली तो किसी के जूते, चप्पल, सैंडल, कपड़े, पानी की बोतलें पड़ी है। भारी मात्रा में जुटे चप्पल और सामान को देखने से ही हादसे में मरने वाले लोगों की संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है। मुगल गढ़ी और फुलरई के बीच करीब 200 बीघा जमीन पर सत्संग में सवा लाख से अधिक लोग शामिल हुए थे। इसकी तैयारी पिछले 15 दिनों से चल रही थी। तमाम जिलों के सत्संगी 24 घंटे पहले यहां आकर जमने शुरू हो गए। आलम यह कि तीन किलोमीटर दूर तक वाहनों की कतारें लगी हुई थीं। एसडीएम की ओर से आयोजन की अनुमति दी गई थी लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से इस बात का अंदाजा नहीं लगाया गया कि कितने लोग सत्संग में शरीक होंगे। जानकारी के मुताबिक, सवा लाख से अधिक लोगों की मौजूदगी के बावजूद 72 सुरक्षाकर्मियों को ही ड्यूटी पर लगाया गया था। प्रवेश और निकास द्वार को लेकर किसी भी प्रकार की व्यवस्था नहीं थी।

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