यू.पी. की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में भाजपा और सपा का होगा घमासान
नई दिल्ली(एजेंसी)। लोकसभा चुनाव में अच्छे परिणाम न मिलने से चिंतन में डूबे भाजपा नीत राजग खेमे की चिंता को सात राज्यों की 13 सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणामों ने और बढ़ा दिया है। सिर्फ दो सीटों पर सिमटी भाजपा के लिए यह ढांढस का तर्क हो सकता है कि उपचुनाव में सत्ताधारी दल के प्रभावी रहने का ट्रेंड है, लेकिन यही तर्क सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बड़ी चुनौती के रूप में उसकी प्रतीक्षा कर रहा है, जहां वह सत्तासीन है। यू.पी. की फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवां, मीरापुर, मिल्कीपुर, करहल, कटेहरी और कुंदरकी के विधायक इस बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन गए। यह नौ सीटें इस तरह रिक्त हुई और दसवीं सीट सीसामऊ सपा विधायक इरफान सोलंकी की आपराधिक मुकदमे में सदस्यता रद्द होने के कारण खाली हुई है। उपचुनाव की अभी घोषणा नहीं हुई है, लेकिन इनके लिए तैयारी मुख्य विपक्षी सपा के साथ ही भाजपा ने शुरू कर दी है। सपा ने लोकसभा चुनाव में तो आशातीत प्रदर्शन किया लेकिन अब उपचुनाव में प्रदर्शन दोहराकर यह साबित करने की चुनौती है कि लोकसभा में जो नतीजे आए उसका ठोस आधार भी है। इनमें सपा के खेमे की जो पांच सीटें खाली हुई हैं, उन पर उसका पलड़ा काफी भारी दिखता है। मैनपुरी की करहल सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव विधायक थे। यह सीट सपा का अभेद्य दुर्ग मानी जाती है। मुरादाबाद की कुंदरकी सीट से जियाउर्रहमान बर्क विधायक थे। अब वह सांसद हैं, लेकिन यह मुस्लिम बहुल सीट सपा के कब्जे से छीनना आसान नहीं दिखता। अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट से भाजपा सिर्फ 1991 में जीती थी। यहां पांच बार बसपा तो दो बार सपा जीती है। क्षेत्र के कद्दावर नेता व दो बार से जीत रहे लालजी वर्मा अब सपा के टिकट से लोकसभा चुनाव जीते हैं। यहां उनके प्रभाव की काट भाजपा का काफी पसीना बहाना पड़ेगा। इसी तरह फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत आने वाली मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर सभी की नजरें होंगी। अयोध्या की भूमि पर भाजपा को परास्त करने वाले अवधेश प्रसाद की इस सीट पर भाजपा को अपना बल दिखाना पड़ेगा। वहीं, कानपुर की सीसामऊ सीट की बात करें तो तीन बार से सपा के इरफान सोलंकी यहां विधायक थे। 2017 के मुकाबले 2022 में सपा की जीत का अंतर बढ़ भी गया था। इस सीट पर भी मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है। यहां अतिरिक्त सीटें पाने की भाजपा की संभावनाएं फिलहाल सीमित दिखती हैं, लेकिन अपने खेमे की पांच सीटें बचाने की चुनौती जरूर उसके सामने है। इनमें से प्रयागराज की फूलपुर, अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद सीट पर भाजपा के लिए लड़ाई थोड़ी आसान होगी। लेकिन मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट इतनी आसान नहीं। पिछली बार इस सीट से रालोद के चंदन चौहान जीत थे, तब रालोद-सपा का गठबंधन था। इस सीट पर सपा का भी अच्छा प्रभाव रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा मुजफ्फरनगर सीट हारी भी है। ऐसे में यह चुनौती है। इसी तरह मीरजापुर की मझवां सीट पर निषाद पार्टी जीती थी। यहां भाजपा और निषाद पार्टी को सामाजिक समीकरण साधने होंगे। भाजपा के एक प्रदेश पदाधिकारी कहते हैं कि अभी चुनाव होने में समय है। संगठन के चुनाव के जरिए जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने का अवसर पार्टी के पास है। साथ ही नाराज-निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को फिर साथ लाने का समय है। हालांकि, वह मानते हैं कि इन सीटों के परिणाम योगी सरकार की सेहत पर बेशक असर न डालें, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव का माहौल बनाने में सहयोगी जरूर साबित होंगे।