संघ की संस्कृति एवं मूल्यपरक भारत-दृष्टि
-ः ललित गर्ग:-
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली ने विभिन्न धार्मिक संगठनों, सेवा-संस्थानों एवं कार्यकर्ताओं की सामाजिक सद्भाव संगोष्ठी का आयोजन कर भारत की ज्वलंत समस्याओं पर सार्थक बहस का एक अनूठा उपक्रम किया। नये मध्यप्रदेश भवन, चाणक्यपुरी में हुए इस आयोजन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यकारणी के सदस्य भैयाजी जोशी के उद्बोधन से जहां राष्ट्रीय महत्व के विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर संघ का विचार एवं दृष्टिकोण विभिन्न धर्म के प्रतिनिधियों के सामने आया वहीं विभिन्न धर्मों एवं संस्थानों से जुड़े लोगों के चिन्तन से संघ भी अवगत हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में कुछ ऐसे विरल व्यक्तित्व हुए हैं, जिनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह, महामंत्री आदि अनेक जिम्मेदारियों का निर्वाह करने वाले भैयाजी जोशी भी हैं, उनकी विरलता या महत्ता के प्रमुख मानक हैं- सशक्त राष्ट्रीयता, हिन्दुत्व और लोकहितकारी प्रवृत्तियां।
राष्ट्रीयता को संवाद का आधार बनाते हुए इस संगोष्ठी में सुरेश भैयाजी जोशी ने जहां विभिन्न धर्मों एवं संस्थानों के प्रतिनिधियों के विचार सुने, वही उन्होंने कहा कि देश के विकास में आज सबसे बड़ी बाधा संस्कारहीनता का भाव है। लोग दूसरे देशों या संस्कृति से खुद को हीन समझने लगे हैं। भारत को जापान, चीन अमेरिका जैसे दूसरे देशों का अनुकरण करने के बजाय भारत को भारत रहने की आवश्यकता है। देश के युवाओं को संस्कार हीनता को छोड़कर संस्कृति, भाषा, जीवनमूल्य, विचार आदि के लिए जागरूक होना होगा। युवा पीढ़ी को समझना होगा कि विश्व कल्याण का मार्ग भारत से होकर ही निकलेगा। संघ मानता है कि वैचारिक मतभेद होने के बाद भी एक देश के हम सब लोग हैं और हम सबको मिलकर इस देश को बड़ा बनाना है। इसलिए इस संवाद की गहरी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता है। समय-समय ऐसे विचार-संवाद आयोजित करने के लिये संघ प्रतिबद्ध है।
सामाजिक सद्भाव गोष्ठी में संघ के कार्यक्रमों की विशद चर्चा से यह तथ्य उभर कर सामने आया कि संघ का काम व्यक्ति निर्माण का है। व्यक्ति से समाज एवं समाज से राष्ट्र निर्मित होता हैं। समाज में आचरण में परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं। यह स्वावलंबी पद्धति से, सामूहिकता से चलने वाला काम है। संघ भारत के शाश्वत मूल्यों को मजबूत और विश्वसनीय बनाना चाहता है ताकि निर्माण का हर क्षण इतिहास बने। नये एवं सशक्त भारत का निर्माण हो, जिसका हर रास्ता मुकाम तक ले जाये। सबकी सबके प्रति मंगलभावनाएं मन में बनी रहे। राष्ट्रीयता के ईमान को, कर्त्तव्य की ऊंचाई को, संकल्प की दृढ़ता को और मानवीय मूल्यों को सुरक्षित रखने के लिये ‘सामाजिक सद्भाव’ के रूप में भैयाजी जोशी ने फिर आह्वान किया है कि आओ, फिर एक बार जागें, संकीर्णता, संस्कारहीनता एवं स्वार्थ की दीवारों को ध्वस्त करें। जोशी ने देश में आज संस्कारहीनता से ग्रस्त होने की चुनौती को दूर करने के लिए परिवार, संगठनों के साथ सभी को प्रयास करने की आवश्यकता व्यक्त की।
जोशी ने स्वदेश में बनी वस्तुओं के उपयोग की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, ‘हम आधुनिकता के विरोधी न बनें। लेकिन आर्थिक नजरिये से किसी मुल्क के गुलाम भी न बनें। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वोकल फोर लोकल को बढ़ावा देने के आह्वान की चर्चा करते हुए चीनी सामान का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किये जाने की अपेक्षा पर बल दिया। भारतीय बाजारों पर चीन लगातार कब्जा करने का प्रयास कर रहा है। हमें ऐसा होने से रोकना होगा इसलिये चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर इन्हें अपने जीवन से दूर किया जाना चाहिये। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ तो हमारी सेना के जवान रोक लेंगे। लेकिन हम नागरिकों को भारत के बाजारों में चीन की घुसपैठ रोककर देश को आर्थिक गुलामी से बचाना होगा। इसके लिये हमें अपने मन के साथ आचरण में भी स्वदेशी भाव जगाना होगा।
भैयाजी जोशी के अनुसार हिंदू चिंतन में अधिकार शब्द का कोई स्थान नहीं है। हिंदू चिंतन संस्कार, आचरण, करणीय कार्य और कर्तव्यों की बात करता है। यह चिंतन हमें ‘मैं’ से निकालकर ‘हम’ की ओर ले जाता है। ‘मैं’ से ‘हम’ होते ही सभी की पीड़ा हमारी पीड़ा बन जाती है। आपसी सौहार्द के संबंध कानून से नहीं बल्कि भावनात्मक लगाव के कारण चलते हैं। भारतीय समाज का चिंतन है कि मानव की जीवन शैली परस्पर संबंधों के आधार पर विकसित हुई। भारत की जीवन शैली सकारात्मक सोच वाली है, जो अच्छाई के लिए प्रेरित करती है। मातृ शक्ति एवं वृद्धों का आदर करने का स्वभाव परिवार के प्रत्येक सदस्य में होना चाहिए। आज परिवार टूट रहे हैं। इस वजह से तमाम विकृतियां समाज में आ रही हैं। इसलिए परिवार व्यवस्था को बनाए रखने की आवश्यकता है।
आज भारत को जानने की महती आवश्यकता है। भारत के बनने और भारत को बनाने को लेकर बड़ी चुनौतियां हैं, क्योंकि भारत को भारतीय दृष्टि से जानने वाले कम हैं। हमें भारत को जानने वाला ही नहीं बल्कि भारत को मानने वाला भी बनना है। भारत में कई आक्रांता आए लेकिन भारत को समाप्त नहीं कर पाए, क्योंकि भारतीय समाज बहुकेन्द्रित व्यवस्थाओं पर चलता रहा। हालांकि अंग्रेजों को थोड़ी मात्रा में सफलता मिली और अंग्रेजी आक्रमण से प्रभावित हुए हैं, यही कारण है कई शिक्षित लोग भी भ्रमित हो जाते हैं। आज भी उस भाव से पीछे नहीं आए हैं। भैयाजी ने कहा कि देश को आगे ले जाने में विद्वान, रक्षा करने वाले, उद्योग धंधे चलाने वाले, नियमित श्रम करने वाले सभी लोगों का योगदान है। भिन्न भिन्न शक्तियां के योगदान से हजारों वर्षों से हमारा समाज चलता आया है। उन्होंने शिक्षा के व्यवसायीकरण और कला के विकृत रूप पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि भारत में विद्या बेचने का नहीं दान का विषय रहा है। जीवन की शिक्षा देने वाला ज्ञान होना चाहिए। आज शिक्षा व्यापार हो गया है। देश में कला का श्रेष्ठ स्थान रहा है लेकिन इसके माध्यम से समाज में प्रदूषण फैलाया जा रहा है, इसे ठीक करने की आवश्यकता है। इसी तरह धर्म का भी भारतीय समाज में बड़ा महत्व रहा है। उन्होंने कहा कि हम भाग्यशाली हैं। हमने भारत में जन्म लिया। यहां जन्म लेने मात्र से हम प्राचीन संस्कृति और परंपराओं के वाहक बन गए। यह सौभाग्य किसी दूसरे देश में जन्म लेने वाले व्यक्ति को नहीं मिला है।
निश्चित ही भैयाजी जोशी का उद्बोधन न केवल राष्ट्रीय बल्कि सामाजिक एवं धार्मिक महत्व का रहा है। उन्होंने राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों का उल्लेख करते हुए संघ सोच को एक बार फिर से स्पष्ट किया है। उन्होंने देश के समग्र एवं त्वरित विकास के लिये जनसंख्या नियंत्रण एवं पर्यावरण संरक्षण की नीति पर जोर दिया है। संघ की नजरों में धर्मांतरण और घुसपैठ से जनसंख्या का संतुलन बिगड़ा है और देश का विकास बाधित हुआ है, जोशी ने इन समस्याओं से निपटने और उनके खिलाफ जनमत का निर्माण करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत के प्रति पूरी दुनिया का भरोसा बढ़ा है। भारत की ताकत बढ़ी है। दुनिया में भारत की आवाज सुनी जा रही है। दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा और साख बढ़ी है और आत्मनिर्भर भारत की आहट सुनाई दे रही है। उन्होेंने बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए स्कूलों, कालेजों पर निर्भरता की बजाए घरों और समाज के वातावरण को स्वस्थ बनाने का संदेश दिया। निश्चित ही जोशी उद्बोधन कोई स्वप्न नहीं, जो कभी पूरा नहीं होता। यह तो भारत को सशक्त एवं विकसित बनाने के लिए ताजी हवा की खिड़की है। संघ एक जागरूक संगठन है और हर समस्या पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। हर व्यक्ति के दिमाग में एक समस्या है और हर व्यक्ति के दिमाग में एक समाधान है। एक समस्या को सब अपनी समस्या समझे और एक का समाधान सबके काम आए। समाधान के अभाव में बढ़ती हुई समस्या संक्रामक बीमारी का रूप न ले सके, इस दृष्टि से आज का समाधान आज प्रस्तुत करने के लिए संघ निरन्तर जागरूक रहता है। जोशी के आह्वान का हार्द सामाजिक एवं धार्मिक शक्तियों को सशक्त बनाते हुए राष्ट्र को नयी शक्ल देने का है। वास्तव में यदि हम भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं तो हमें अपनी सोच और अपने तौर-तरीके बदलने होंगे।